Saturday, 28 April 2012

वो बचपन 


बचपन का जमाना होता था, खुशिया का खजाना होता था
चाहत चाँद को पाने की थी, दिल तितली का दीवाना होता था
खबर ना थी कुछ सुबह की, ना श्याम का ठीकना होता था
थक हार के स्खूल से आना, फिर खेलने भी जाना होता था
बारिश में कागज की कश्ती थी, हर मोसम सुहाना होता था
हर खेल में सामिल होते थे, हर रिश्ते में अपना पन होता था
पापा की वो गलती पर डाटना, मम्मी का मानाना होता था
गम की जुबा होती ना थी, ना खुसिया का पैमाना होता था
रोने की वजह ना होती थी, ना हसने का बहाना होता था
अब नही रहा वो बचप्न, वो बचपन तो बचपन ही होता था
 

1 comment:

  1. सुन्दर कविता..इस चित्र को भी आपने सही स्थान दिया..धन्यवाद..यह चित्र मेरे द्वारा ही लिया गया है..शारदा के तट पर..

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